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पहला अङ्क

१७

थी कि उनका सुंह दीपककी तरह दमक रहा था। सैकड़ों आदमी घेरे हुए थे पर वह किसीसे बाततक न करते थे।

सबल—इससे यह तो साबित नहीं होता कि वह कोई सिद्ध पुरुष हैं। अशिष्टता महात्माओं का लक्षण नहीं है।

ज्ञानी—खोजमें रहनेवाले को कभी-कभी सिद्ध पुरुष भी मिल जाते हैं। जिसमें श्रद्धा नहीं है उसे कभी किसी महात्मा से साक्षात् नहीं हो सकता। तुम्हें सन्तानकी लालसा न हो पर मुझे तो है। दूध-पूतसे किसीका मन भरते आजतक नहीं सुना।

सबल—अगर साधुओंके आशीर्वादसे सन्तान मिल सकती तो आज संसारमें कोई निस्सन्तान प्राणी खोजनेसे भी न मिलता। तुम्हें भगवानने एक पुत्र दिया है। उनसे यही याचना करो कि उसे कुशलसे रखें। हमें अपना जीवन अब सेवा और परोपकारकी भेंट करना चाहिये।

ज्ञानी—(चिढ़कर) तुम ऐसी निर्दयतासे बातें करने लगते हो इसीसे कभी इच्छा नहीं होती कि तुमसे अपने मनकी कोई बात कहूँ। लो, अपनी किताबें पढ़ो जिनमें तुम्हारी जान बसती है, जाती हूँ।

सबल—बस रुठ गईं। चित्रकारों ने क्रोधकी बड़ी भयंकर कल्पना की है पर मेरे अनुभवसे यह सिद्ध होता है कि सौन्दर्य क्रोधहीका रूपान्तर है। कितना अनर्थ है कि ऐसी मोहिनी