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पांचवां अङ्क

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साधुओं और अतिथियोंका सत्कार होता है, कितने ही विशाल मन्दिर सजे हुए हैं; विद्याकी उन्नति हो रही है लेकिन उनकी अपकीतियों के सामने उनकी सुकीर्तियां अधेरी रातमें जुगुनूकी चमकके समान हैं, जो अन्धकारको और भी गहन बना देती हैं। पापकी कालिमा दान और दयासे नहीं धुलती। नहीं मेरा तो यह अनुभव है कि धनी जन कभी पवित्र भावोंसे प्रेरित हो ही नहीं सकते। उनकी दानशीलता, उनकी भक्ति, उनकी उदारता, उनकी दीनवत्सलता वास्तवमें उनके स्वार्थको सिद्ध करनेका साधन मात्र है। इसी टट्टीकी आड़में वह शिकार खेलते हैं। हाय! तुम लोग मनमें सोचते होगे यह रोने और विलाप करनेका समय है; धन और सम्पदाको निन्दा करनेका नहीं। मगर मैं क्या करूँ,आंसुओं की अपेक्षाइ न जले हुए शब्दोंसे इन फफोलोंके फोड़नेसे, मेरे चित्तको अधिक शांति मिल रही है। मेरे शोक, हृदयदाह और आत्मग्लानिका प्रवाह केवल लोचनों द्वारा नहीं हो सकता, उसके लिये ज्यादा चौड़े, ज्यादा स्थूल मार्गकी जरूरत है। हाय! इस देवीमें अनेक गुण थे। मुझे याद नहीं आता कि, इसने कभी एक अप्रिय शब्द भी मुझसे कहा हो, वह मेरे प्रेममें मग्न थी। आमोद और विलाससे उसे लेशमात्र भी प्रेम न था। वह संन्यासियों का जीवन व्यतीत करती थी। मेरे प्रति उसके हृदयमें कितनी श्रद्धा थी, कितनी शुभका-