पृष्ठ:संग्राम.pdf/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

संग्राम

२९०

मना। जबतक जीयी मेरे लिये जीयी और जब मुझे सत्पथसे हटते देखा तो यह शौक उसके लिये असह्य हो गया। हाय! मैं जानता कि वह ऐसा घातक संकल्प कर लेगी तो अपने आत्मपतनका वृत्तान्त उससे न कहता। पर उसकी सहृदयता और सहानुभूतिके रसास्वादनसे मैं अपनेको रोक न सका। उसकी वह क्षमा, वह आत्मकृपा कभी न भूलेगी जो इस वृत्तान्तको सुनकर उसके उदास मुखपर झलकने लगी। रोष या क्रोधका लेशमात्र भी चिह्न न था। वह दयामूर्त्ति सदाके लिये मेरे हृदयगृहको उजाड़ कर अदृश्य हो गई। नहीं, मैंने उसे पटक कर चूर चूर कर दिया। (रोता है) हा! उसकी याद अब मेरे दिलसे कभी न निकलेगी।