पृष्ठ:संग्राम.pdf/३११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
चतुर्थ दृश्य

(स्थान—गुलाबीका मकान, समय—१० बजे रात।)

गुलाबी—अब किसके बलपर कूदूँ। पास जो जमा पूँजी थी चह निकल गई। तीन चार दिनके अन्दर क्यासे क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रङ्क हो गये। जिस देवीकी बदौलत इतनी उम्र सुखसे कटी वह संसारसे उठ गयीं। अम वहाँ पेटकी रोटियोंके सिवा और क्या रखा है। न उधर ही कुछ रहा, न इधर ही कुछ रहा। दोनों लोकसे गई। उस कलमुँहें साधुका कहीं पता नहीं। न जाने कहाँ लोप हो गया। रंगा हुआ सियार था। मैं भी उसके छल में आ गई। अब किसके बलपर कूदूं। बेटा-बहू योंही बात न पूछते थे, अब तो एक बूंद पानीको तरसूँगी। अब किस दावेसे कहूँगी, मेरे नहानेके लिये पानी रख दे, मेरी साड़ी छांट दे, मेरा बदन दाब दे। किस दाबेपर धौंस जमाऊँगी। सब रुपयेके मीत हैं। दोनों जानते थे अम्मांके पास धन है। इसीलिये डरते थे, मानते