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पांचवा अङ्क

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चरण धोकर पीऊं। इसी तरह रोज रहें तो फिर यह घर स्वर्ग हो जाय। (प्रगट) जरा बदन दबा देनेसे कौन बड़ी रात निकल जायगी।

गुलाबी—(मनमें) आज कितने प्रेमसे बहू मेरी सेवा कर रही है, नहीं तो ज़रा-ज़रा सी बातपर नाक-भौं सिकोड़ा करती थी। (प्रगट) जी चाहे तो थोड़ी देरके लिये आजाना, तुम्हें प्रेमसागर सुनाऊंगी।

(चेतनदासका प्रवेश)

गुलाबी—(आश्चर्यसे) महाराज! आप कहां चले गये थे? मैं दिनमें कई बार आपकी कुटीपर गई।

चेतनदास—आज मैं एक कार्य्यवश बाहर चला गया था। अब एक महान् तीर्थ पर जानेका विचार है। अपना धन ले लो, गिन लेना, कुछ न कुछ अधिक ही होगा। मैं वह मन्त्र भूल गया जिससे धन दूना हो जाता था।

गुलाबी—(चेतनदासके पैरोंपर गिरकर) महाराज, बैठ जाइये, आपने यहां तक आनेका कष्ट किया है, कुछ भोजन कर लीजिये। कृतार्थ हो जाऊंगी।

चेतन—नहीं माताजी, मुझे विलम्ब होगा। मुझे आज्ञा दो और मेरी यह बात ध्यानसे सुनो। आगे किसी साधु महात्माको अपना धन दुना करनेके लिये मत देना नहीं तो धोखा खाओगी।