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संग्राम

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(चम्पा और भृगु आकर चेतनदासके चरण छूते हैं)

माता, तेरे पुत्र और बधू बहुत सुशील दीखते हैं। परमात्मा इनकी रक्षा करें। तू भूल जा कि मेरे पास धन है। धनके बलसे नहीं, प्रेम के बलसे अपने घरमें शासन कर।

(चेतनदासका प्रस्थान)