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पांचवा दृश्य
(स्थान—स्वामी चेतनदासकी कुटी, समय—रात, चेतनदास गङ्गा-
तटपर बैठे हैं।)

चेतनदास—(आपही आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगनेके लिये यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिये योगकी क्रियाएं सीखीं, इसीलिये हिप्नाटिज्म सीखा। मेरा लोग कितना सम्मान, कितनी प्रतिष्ठा करते हैं। पुरुष मुझसे धन मांगते हैं,स्त्रियां मुझसे सन्तान मांगती हैं। मैं ईश्वर नहीं कि सबकी मुरादें पूरी कर सकूं तिसपर भी लोग मेरा पिण्ड नहीं छोड़ते।

मैंने कितने घर तबाह किये, कितनी सती स्त्रियोंको जालमें फंसाया, कितने निश्छल पुरुषोंको चकमा दिया। यह सब स्वांग केवल सुखभोगके लिये, मुझपर धिक्कार है!

पहले मेरा जीवन कितना पवित्र था। मेरे आदर्श कितने ऊंचे थे। मैं संसारसे विरक्त होगया था। पर स्वार्थी संसारने