पृष्ठ:संग्राम.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
पहला अङ्क

१९


चमत्कार है। खैर, कल चलूँगा, देखूँ इन स्वामीजी के क्या रंग ढंग हैं।............अदालतों की बात सोच रहा था। यह आक्षेप किया जाता है कि पंचायतें यथार्थ न्याय न कर सकेंगी, पंच लोग मुँहदेखी करेंगे और वहाँ भी सबलोंकी ही जीत होगी। इसका निवारण यों हो सकता है कि स्थायी पंच न रखे जायँ। जब जरूरत हो दोनों पक्षोंके लोग अपने-अपने पंचोंको नियत कर दें।......किसानोंमें भी ऐसी कामिनियां होती हैं, यह मुझे न मालूम था। यह निस्सन्देह किसी उच्च कुलकी लड़की है। किसी कारणवश इस दुरावस्थामें आ फँसी है। विधाताने इस अवस्थामें रखकर उसके साथ अत्याचार किया है। उसके कोमल हाथ खेतोंमें कुदाल चलाने के लिये नहीं बनाये गये हैं, उसकी मधुरवाणी खेतोंमें कौवे हाँकनेके लिये उपयुक्त नहीं है, जिन केशोंसे झूमरका भार भी न सहा जाय उसपर उपले और अनाजके टोकरे रखना महान अनर्थ है, मायाकी विषम लीला है, भाग्यका क्रूर रहस्य है। वह अबला है, विवश है, किसीसे अपने हृदयकी व्यथा कह नहीं सकती। अगर मुझे मालूम हो जाय कि वह इस हालतमें सुखी है, तो मुझे संतोष हो जायगा। पर यह कैसे मालूम हो। कुलवती स्त्रियां अपनी विपत्ति कथा नहीं कहतीं, भीतर ही भीतर जलती हैं पर जबानसे हाय नहीं करतीं।.........मैं फिर उसी उधेड़-बुनमें पड़ गया। समझमें