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संग्राम

३०४

नजर तो देते नहीं, हाँ हजारों रुपये खैरात हो रहे हैं तुम्हारा जी चाहे तुम भी ले लो। मैंने तो समझा था कि यह सुनकर अपनासा मुँह लेके चला जायगा लेकिन इस महकमेवालोंको हया नहीं होती, तुरन्त हाथ फैला दिये। आखिर मैंने २५) हाथपर रख दिये।

फत्तू—कुछ बोला तो नहीं?

हलधर—बोलता क्या, चुपकेसे चला गया।

फत्तू—गानेवाले आ गये?

हलधर—हां, चौपाल में बैठे हैं, बुलाता हूं।

मँगरू—(गाँवकी ओरसे आकर) हलधर भैया, सबकी सलाह है कि तुम्हारा बिमान सजाकर निकाला जाय, वहाँसे लौटनेपर गाना-बजाना हो।

हरदास—तुम्हारी बदौलत सब कुछ हुआ है, तुम्हारा कुछ तो महाराम होना चाहिये।

हलधर—मैंने कुछ नहीं किया। सब भगवानकी इच्छा है। जरा गानेवालोंको बुला लो।

(हरदास जाता है)

मँगरू—भैया, अब तो जमींदारको मालगुजारी न देनी पड़ेगी?

हलधर—अब तो हम आप ही जमींदार हैं, मालगुजारी