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पांचवां अङ्क

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सरकारको देंगे।

मँगरू—तुमने कागद-पत्तर देख लिये हैं? रजिस्टरी हो गई है न?

हलधर—मेरे सामने ही हो गई थी।

(हलधर किसी कामसे चला जाता है, हरदास गानेवालोंको
बुला लाता है, वह सब साज़ मिलाने लगते हैं)

मँगरू—(हरदाससे) इसमें हलधरका कौन एहसान है। इनका बस होता तो सब अपने ही नाम चढ़वा लेते।

हरदास—एहसान किसीका नहीं है। ईश्वरकी जो इच्छा होती है वही होता है। लेकिन यह तो समझ रहे हैं कि मैं ही सबका ठाकुर हूं। जमीनपर पाँव ही नहीं रखते। चन्देके रुपये ले लिये लेकिन हमसे कोई सलाहतक नहीं लेते। फत्तू और यह दोनों जो जी चाहता है करते हैं।

मँगरू—दोनों खासी रकम बना लेंगे। दो हजार चन्दा उतरा है। खरच वाजिबी ही वाजिबी हो रहा है।

(गाना होता है)

जगदीश सकल जगतका तू ही अधार है
भूमि, नीर, अगिन, पवन, सूरज, चन्द, शैल, गगन,
तेरा किया चौदह भुवनका पसार है। जगदीश०
सुर,नर,पशु, जीव-जन्तु, जल थल चर हैं अनंत,