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संग्राम

२०


नहीं आता मेरे चित्तकी यह दशा क्यों हो रही है। अबतक मेरा मन कभी इतना चंचल नहीं हुआ था। मेरे युवाकालके सह वासीतक मेरी अरसिकतापर आश्चर्य करते थे। अगर मेरी इस लोलुपताकी जरा भी भनक उनके कान में पड़ जाय तो मैं कहीं मुँह दिखाने लायक न रहूँ। यह आग मेरे हृदयमें ही जले, और चाहे हृदय जलकर राख हो जाय पर उसकी कराह किसीके कानमें न पड़ेगी। ईश्वरकी इच्छाके बिना कुछ नहीं होता। यह प्रेमज्योति उद्दीप्त करने में भी उसकी कोई न कोई मसलहत जरूर होगी।

(घंटी बजाता है)

एक नौकर―हजूर हुकुम?

सबल―घोड़ा खींचो।

नौकर―बहुत अच्छा।