पृष्ठ:संग्राम.pdf/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
पहला अङ्क

२३


वसूल होती।

(हलधरका प्रवेश)

कञ्चन―कहो हलधर, कैसे चले?

हलधर―कुछ नहीं सरकार, सलाम करने चला आया।

कञ्चन―किसान लोग बिना किसी प्रयोजनके सलाम करते नहीं चलते। फारसी कहावत है-सलामे दोस्ताई बेरारज़ नेस्त।

हलधर―आप तो जानते ही हैं फिर पूछते क्यों हैं? कुछ रुपयोंका काम था।

कंचन―तुम्हें किसी पण्डितसे साइत पूछकर चलना चाहिये था। यहां आजकल रुपयोंका डौल नहीं है। क्या करोगे रुपये लेकर?

हलधर―काकाकी बरसी होनेवाली है। और भी कई काम हैं।

कंचन―स्त्रीके लिये गहने भी बनवाने होंगे?

हलधर―(हंसकर) सरकार आप तो मनकी बात ताड़ लेते हैं।

कंचन―तुम लोगोंके मनकी बात जान लेना ऐसा कोई कठिन काम नहीं, केवल खेती अच्छी होनी चाहिये। यह फसल अच्छी है, तुम लोगों को रुपयेकी जरूरत होनी स्वाभाविक है। किसानने खेतमें पौधे लहराते हुए देखे और उसके पेटमें चूहे