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संग्राम

२६

हलधर―जो हुकुम।

मुनीम―मेरी दस्तूरी भी ५) होती है, लेकिन तुम गरीब आदमी हो, तुमसे ४) ले लूँगा! जानते ही हो मुझे यहाँसे कोई तलब को मिलती नहीं, बस इसी दस्तूरीका भरोसा है।

हलधर―बड़ी दया है।

मुनीम―१) ठाकुरजीको चढ़ाना होगा।

हलधर―चढ़ा दीजिये। ठाकुर तो सभीके हैं।

मुनीम―और १) ठकुराइनके पानका खर्च।

हलधर―ले लीजिये। सुना है गरीबोंपर बड़ी दया करती हैं।

मुनीम―कुछ पढ़े हो?

हलधर―नहीं महाराज; करिया अच्छर भैंस बराबर है।

मुनीम―तो इस इस्टामपर बायें अंगूठे का निशान करो।

(सादे स्टाम्पपर निशान बनवाता है।)

मुनीम―(सन्दूकसे रुपये निकालकर) गिन लो।

हलधर―ठीक ही होगा।

मुनीम―चौखटपर जाकर तीन बार सलाम करो और घर-की राह लो।

(हलधर रुपये अंगोछेमें बाधता हुआ जाता है। कञ्चनसिंहका प्रवेश।)