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पहला अङ्क

२९

लेना मंजूर नहीं किया। सब यही कहते हैं कि सरकार हमारे मेहमान हैं। धन्यभाग! जबतक चाहें सिर और आंखोंपर रहें। हम खिदमतके लिये दिलोजानसे हाजिर हैं। दूध तो इतना आ गया है कि शहरमें ४) को भी न मिलता।

सबल―यह सब एहसानकी बरकत है। जब मैंने बेगार बन्द करने का प्रस्ताव किया तो तुम लोग, यहांतक कि कञ्चन-सिंह भी, सभी मुझे डराते थे। सबको भय था कि असामी शोख हो जायँगे, सिरपर चढ़ जायँगे। लेकिन मैं जानता था कि एहसानका नतीजा कभी बुरा नहीं होता। अच्छा महराजसे कहो कि मेरा भोजन भी जल्द बना दें।

(चपरासी चला जाता है।)

सबल―(मनमें) बेगार बन्द करके मैंने गांववालों को अपना भक्त बना लिया। बेगार खुली रहती तो कभी न कभी राजेश्वरीको भी बेगार करनी ही पड़ती, मेरे आदमी जाकर उसे दिक़ करते। अब यह नौबत कभी न आयेगी। शोक यही है कि यह काम मैंने नेक इरादोंसे नहीं किया, इसमें मेरा स्वार्थ छिपा हुआ है। लेकिन अभीतक मैं निश्चय नहीं कर सका कि इसका अंत क्या होगा? राजेश्वरी के उद्धार करने का विचार तो केवल भ्रान्त है। मैं उसके अनुपम रूप-छटा, उसके सरल व्यवहार और उसके निर्दोष अंगविन्यासपर आसक्त हूँ। इसमें रत्तीभर भी