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पहला अङ्क

३७

राजेश्वरी—दया आपकी चाहिये आप हमारे ठाकुर हैं। मैं तो आपकी चेरी हूँ। अब मैं जाती हूँ। गाय किसीके खेतमें पैठ जायगी। कोई देख लेगा तो अपने मनमें न जाने क्या कहेगा।

सबल—तीनों तरफ अरहर और ऊखके खेत हैं, कोई नहीं देख सकता। मैं इतनी जल्द तुम्हें न जाने दूंगा। आज महीनोंके बाद मुझे वह सुअवसर मिला है, बिना बरदान लिये न छोड़ूंगा। पहले यह बतलाओ कि इस काक मण्डली में तुम जैसी हंसनी क्यों कर आ पड़ी? तुम्हारे माता पिता क्या करते हैं?

राजे°—यह कहानी कहने लगूंगी तो बड़ी देर हो जायगी। मुझे यहां कोई देख लेगा तो अनर्थ हो जायगा।

सबल—तुम्हारे पिता भी खेती करते हैं?

राजे°—पहले बहुत दिनोंतक टापूमें रहे। वहीं मेरा जन्म हुआ। जब वहांके सरकारने उनकी जमीन छीन ली तो यहां चले आये। तबसे खेती बारी करते हैं। माताका वहीं देहान्त हो गया। मुझे याद आता है कुन्दन का सा रंग था। बहुत सुन्दर थीं।

सबल—समझ गया। (तृष्णापूर्ण नेत्रोंसे देखकर) तुम्हारा तो इन गंवारोंमें रहनेसे जी घबराता होगा। खेती बारी की मेहनत भी तुम जैसी कोमलांगी सुन्दरीको बहुत अखरती होगी।