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संग्राम

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किसीके कान में पड़ गईं तो यही परजा जो आपके पैरोंकी धूल माथेपर चढ़ानेको तरसती है आपकी बैरी हो जायगी, आपके पीछे पड़ जायगी। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। मुझे भूल जाइये। संसार में एकसे एक सुन्दर औरतें हैं। मैं गँवारिन हूँ। मजूरी करना मेरा काम है। इन प्रेमकी बातों को सुनकर मेरा चित्त ठिकाने न रहेगा। मैं उसे अपने वशमें न रख सकूंगी। वह चञ्चल हो जायगा और न जाने उस अचेत दशामें क्या कर बैठे। उसे फिर नामकी, कुलकी, निन्दा की लाज न रहेगी। प्रेम बढ़ती हुई नदी है। उसे आप यह नहीं कह सकते कि यहांतक चढ़ना, इसके आगे नहीं। चढ़ाव होगा तो वह किसीके रोके न रुकेगी। इसलिये मैं आपसे विनती करती हूँ कि यहीं तक रहने दीजिये। मैं अभीतक अपनी दशामें सन्तुष्ट हूं। मुझे इसी दशा- में रहने दीजिये। अब मुझे देर हो रही है, जाने दीजिये।

सबल--राजेश्वरी, प्रेमके मदसे मतवाला आदमी उपदेश नहीं सुन सकता। क्या तुम समझती हो कि मैंने बिना सोचे-समझे इस पथपर पग रखा है। मैं दो महीनोंसे इसी रैस बैसमें हूँ। मैंने नीतिका, सदाचरणका, धर्मका, लोकनिन्दाका, आश्रय लेकर देख लिया, कहीं संतोष न हुआ तब मैंने यह पथ पकड़ा। मेरे जीवनका बनाना बिगाड़ना अब तुम्हारे ही हाथ है। अगर तुमने मुझपर तरस न खाया तो अन्त यही होगा कि मुझे आत्महत्या