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संग्राम

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कैसे रखते हैं। मैं जिस दशामें भी हूँ, संतुष्ट हूँ, मुझे किसी वस्तुकी तृषना नहीं है। आपका धन आपको मुबारक रहे। आपका कुशल इसोमें है कि अभी आप यहाँसे चले जाइये। अगर गाँववालोंके कानोंमें इन बातोंकी ज़रा भी भनक पड़ी वो वह मुझे तो किसी तरह जीता न छोड़ेंगे पर आपके भी जानके दुश्मन हो जायँगे। आपकी दया, उपकार-सेवा एक भी आपको उनके कोपसे न बचा सकेगा।

(चली जाती है)

सबल--(आप ही आप) इसकी संगति मेरे चित्तको हटा- नेकी जगह और भी बलके साथ अपनी ओर खींचती है। ग्रामीण स्त्रियां भी इतनी दृढ़ और आत्माभिमानी होती हैं, इसका मुझे ज्ञान न था। अबोध बालकको जिस काम के लिये मना करो वही अदबदा कर करता है। मेरे चित्तकी दशा उसी बालकके समान है। वह अवहेलनासे हतोत्साह नहीं, वरन् और भी उत्तेजित होता है।

(प्रस्थान)