पृष्ठ:संग्राम.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
पहला अङ्क

४७

घर कोई बुढ़िया नहीं है। उसकी घरवाली कल की बहुरिया है जा नहीं सकती। उसकी ओरसे चली जा।

सलोनी--हाँ उसकी जगहपर चली जाऊंगी। बिचारी मेरी बड़ी सेवा करती है। जब जाती हूँ तो बिना सिरमें तेल डाले और हाथ पैर दबाये नहीं आने देती। लेकिन बहली जुता देगा न?

फत्तू--बेगार करने रथपर बैठ कर जायगी।

हलधर--नहीं काकी, मैं बहली जुता दूंगा। सबसे अच्छी बहलीमें तुम बैठना।

सलोनी--बेटा, तेरी बड़ी उम्मिर हो, जुग जुग जी। बहलीमें ढोल मजीरा रख देना। गाती-बजाती जाऊंगी।