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सातवां दृश्य
(समय--सन्ध्या, स्थान--मधुबन।
ओले पड़ गये हैं, गांवके स्त्री-पुरुष खेतोंमें जमा हैं।

फत्तू--अल्लाहने परसी परसाई थाली छीन ली।

हलधर--बना बनाया खेल बिगड़ गया।

फत्तू--छावत लागत ६ बरस और छिनमें होत उजाड़। कई सालके बाद तो अबकी खेती जरा रङ्गपर आई थी। कल इन खेतों को देखकर कैसी गज भरकी छाती हो जाती थी। ऐसा जान पड़ता था सोना बिछा दिया गया है। बित्ते बित्ते भरकी बालें लहराती थीं, पर अल्लाहने मारा सब सत्यानास कर दिया। बागमें निकल जाते थे तो बौरकी महँकसे चित्त खिल उठता था। पर आज बौरकी कौन कहे पत्तेतक झड़ गये।

एक बृद्ध किसान--मेरी यादमें इतने बड़े-बड़े ओले कभी न पड़े थे।

हलधर--मैंने इतने बड़े ओले देखे ही न थे, जैसे चट्टान