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संग्राम

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फत्तू--अब तो जो होना था वह हो गया। पछतानेसे क्या हाथ आयेगा।

राजे०--आदमी ऐसा काम ही क्यों करे कि पीछेसे पछताना पड़े।

सलोनी--मेरी सलाह मानो। सब जने जाकर ठाकुरसे फिरियाद करो कि लगानकी माफी हो जाय। दयावान आदमी हैं। मुझे तो बिस्सास है कि माफ कर देंगे। दलहाईकी बेगा- रमें हम लोगोंसे बड़े प्रेमसे बातें करते रहे। किसीको छटाँक भर भी दाल न दलने दी। पछताते रहे कि नाहक तुम लोगोंको दिक किया। मुझसे बड़ी भूल हुई। मैं तो फिर कहूँगी कि आदमी नहीं देवता हैं।

फत्तू--जमींदारके माफ़ करनेसे थोड़े माफी होती है; जब सरकार माफ करे तब न? नहीं तो जमींदारको मालगुजारी घरसे चुकानी पड़ेगी। तो सरकारसे इसकी कोई आसा नहीं। अमले लोग तहकिकात करनेको भेजे जायँगे। वह असामियोंसे खूब रिसवत पायेंगे तो नकसान दिखायेंगे नहीं तो लिख देंगे ज्यादा नकसान नहीं हुआ। सरकार बहुत करेगी।) की छूट कर देगी। जब।।।) देने ही पड़ेंगे तो।) और सही। रिसवत और कचहरीकी दौड़से तो बच जायेंगे। सरकारको अपना खजाना भरनेसे मतलब है कि परजाको पालनेसे। सोचती होगी यह