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पहला अङ्क

५१

सब न रहेंगे तो इनके और भाई तो रहेंगे ही। जमीन परती थोड़े पड़ी रहेगी।

एक वृद्ध किसान--सरकार एक पैसा भी न छोड़ेगी। इस साल कुछ छोड़ भी देगी तो अगले साल सूद समेत वसूल कर लेगी।

फत्तू--बहुत निगाह करेगी तो तकाबी मंजूर कर देगी। उसकी भी सूद लेगी। हर बहाने से रुपया खींचती है। कचहरीमें झूठो कोई दरखास देने जावो तो बिना टके खर्च किये सुनाई नहीं होती। अफ़ीम सरकार बेचे, दारू, गाँजा, भांग, मदक, चरस सरकार बेचे। और तो और नोनतक बेचती है। इस तरह रुपया न खींचे तो अफसरोंकी बड़ी २ तलब कहाँसे दे। कोई १ लाख पाता है, कोई दो लाख, कोई तीन लाख। हमारे यहाँ जिसके पास लाख रुपये होते हैं वह लखपती कहलाता है, मारे धमंड के सीधे ताकता नहीं। सरकारके नौकरोंकी एक एक सालकी तलब दो दो लाख होती है। भला वह लगानकी एक पाई भी छोड़ेगी।

हलधर--बिना सुराज मिल हमारी दसा न सुधरेगी। अपना राजा होता तो इस कठिन समयमें अपनी मदद करता।

फत्तू--मदद करेंगे! देखते हो जबसे दारू, अफ़ीम की बिक्री बन्द हो गई है अमले लोग नसेका कैसा बखान करते फिरते