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संग्राम

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हैं। कुरान शरीफमें नसा हराम लिखा है, और सरकार चाहती है कि देस नसेबाज हो जाय। सुना है साहबने आजकल हुकुम दे दिया है कि जो लोग खुद अफीम सराब पीते हों और दूस- रोंको पीने की सलाह देते हों उनका नाम खैरखाहोंमें लिख लिया जाय। जो लोग पहले पीते थे और अब छोड़ बैठे हैं, या दूसरों- को पीना मना करते हैं उनका नाम बागियोंमें लिखा जाता है।

हलधर--इतने सारे रुपये क्या तलबोंमें ही उठ जाता है?

राजे०--गहने बनवाते हैं।

ठीक तो कहती है क्या सरकारके जोरू बच्चे नहीं हैं। इतनी बड़ी फौज बिना रुपये के ही रखी है। एक-एक तोप लाखोंमें आती है। हवाई जहाज कई-कई लाख के होते हैं। सिपाहियों को कूचके लिये हवा गाड़ी चाहिये। जो खाना यहां रईसोंको मयस्सर नहीं होता वह सिपाहियोंको खिलाया जाता है। सालमें ६ महीने सब बड़े २ हाकिम पहाड़ोंकी सैर करते हैं। देखते तो हो छोटे-छोटे हाकिम भी बादसाहोंकी तरह ठाटसे रहते हैं, अकेली जानपर १०-१५ नौकर रखते हैं, एक पूरा बङ्गला रहनेको चाहिये। जितना बड़ा हमारा गांव है उससे ज्यादा जमीन एक बंगलेके हातेमें होती है। सुनते हैं सब १०-२०) बोतलकी सराब पीते हैं। हमको तुमको भर पेट रोटियां नहीं नसीब होती, वहां रात दिन दंग चढ़ा रहता है। हम तुम रेल-