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संग्राम

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जायगा। इन सब झंझटोंसे तो यही अच्छा है कि

रहिमन चुप है बैठिये देखि दिननको फेर।
जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहैं देर॥

हलधर--मुझे तो ६०) लगान देने हैं। बैल बधिया बिक जायंगे तब भी पूरा न पड़ेगा।

एक किसान--बचेंगे किसके। अभी साल भर खानेको चाहिये। देखो गेहूंके दाने कैसे बिखड़े पड़े हैं जैसे किसीने मसल दिये हों।

हलधर--क्या करना होगा?

राजे०--होगा क्या जैसी करनी है वैसी भरनी होगी। तुम तो खेतमें बाल लगते ही बावले हो गये। लगान तो था ही ऊपरसे महाजनका बोझ भी सिर पर लाद लिया।

फत्तू--तुम मैके चली जाना। हम दोनों जाकर कहीं मजूरी करेंगे। अच्छा काम मिल गया तो साल भरमें डोंगा पार है।

राजे०--हां और क्या, गहने तो मैंने पहने हैं, गायका दूध मैंने खाया है, बरसी मेरे ससुरकी हुई है, अब तो भरौतीके दिन आये तो मैं मैके भाग जाऊँ। यह मेरा किया न होगा। तुम लोग जहाँ जाना वहीं मुझे भी लेते चलना। और कुछ न होगा तो पकी-पकाई रोटियां तो मिल जायँगी।

सलोनी--बेटी, तूने यह बात मेरे मनकी कही। कुलवन्ती