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दूसरा दृश्य

समय--संध्या, स्थान--सबलसिंहकी बैठक।

सबल--(आपही आप) मैं चेतनदासको धूर्त समझता था, पर वह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य्य है। ज्ञानी उनके दर्शनोंको लालायित हैं। क्या हर्ज है। ऐसे आत्मज्ञानी पुरुषोंके दर्शनसे कुछ उपदेश ही मिलेगा।

(कंचनसिहका प्रवेश)

कंचन--(तार दिखाकर) दोनों जगह हार हुई। पूनामें थोड़ा कट गया। लखनऊमें जाकी घोड़ेसे गिर पड़ा।

सबल--यह तो तुमने बुरी खबर सुनाई। कोई पांच हजारका नुकसान हो गया।

कंचन--गल्लेका बाजार चढ़ गया। अगर अपना गेहूँ दस दिन और न बेचता तो दो हजार साफ़ निकल आते।

सबल--पर आगम कौन जानता था।

कंचन--असामियोंसे एक कौड़ी वसूल होनेकी आशा नहीं।