पृष्ठ:संग्राम.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
दूसरा अङ्क

६७

अभी मैं फुटबाल देखकर आया हूं, कहता हूं जूता उतार दे, लेकिन वह लालटेन साफ कर रहा है, सुनता ही नहीं। आप मुझे कोई अलग एक नौकर दे दीजिये, जो मेरे काम के सिवा और किमीका काम न करे।

सबल--(मुस्कुराकर) मैं भी एक ग्लास पानी माँगूँ तो न दे?

अचल--आप हँसकर टाल देते हैं, मुझे तकलीफ़ होती है। मैं जाता हूँ इसे खूब पीटता हूँ।

सबल-–बेटा, वह काम भी तो तुम्हारा ही है। कमरेमें रोशनी न होती तो उसके सिर होते कि अबतक लालटेन क्यों नहीं जलाई। क्या हर्ज है आज अपने ही हाथसे जूते उतार लो। तुमने देखा होगा ज़रूरत पड़नेपर लेडियाँतक अपने बक्स उठा लेती हैं। जब बम्बे मेल आती है तो जरा स्टेशनपर जाकर देखो।

अचल--आज अपने जूते उतार लूँ, कलको जूतों में रोगन भी आप ही लगा लूँ, वह भी तो मेरा ही काम है, फिर खुद ही कमरेकी सफाई भी करने लगूं, अपने हाथों टब भी भरने लगूँ, धोती भी छाँटने लगूँ।

सबल--नहीं यह सब करने को मैं नहीं कहता, लेकिन अगर किसी दिन नौकर न मौजूद हो तो जूता उतार लेनेमें