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निवेदन

आज हम पाठकों के सामने हिन्दी पुस्तक एजेन्सीमाला की २६ वीं संख्या "संग्राम नाटक" लेकर उपस्थित होते हैं। आज हिन्दी संसार में नाटक की पुस्तकें धड़ाधड़ निकल रही हैं पर पढ़ने योग्य नाटक कितने हैं यह विज्ञ पाठक और चतुर समालोचक ही बता सकते हैं।

नाटक लिखने के लिये कितनी योग्यताकी आवश्यकता है और नाटककार में क्या-क्या गुण होने चाहिये यह प्रकाशक के निवेदन का आलोक्य विषय नहीं है। पर प्रसङ्गवश इतना लिख देना आवश्यक समझते हैं कि जिसने मनुष्य के चित्त के विविध प्रकार के भावों के मनन तथा अध्ययन करने का श्रम नहीं उठाया, जो प्रकृतिका सच्चा पर्यवेक्षण नहीं कर सकता, जिसकी वर्णन-पटुता में इतनी योग्यता नहीं कि वह मनुष्य के हृदयस्थ प्रत्येक भावों को कागज पर अपनी लेखनी द्वारा मूर्ति की भाँति लाकर खड़ा कर दे वह सच्चा नाटककार नहीं हो सकता और न उसके लिखे नाटक, नाटक की श्रेणी में गिने जाने योग्य हो सकते हैं। प्रस्तुत नाटक हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक श्रीयुत प्रेमचन्दजी की रचना है। प्रेमचन्द्रजी से हिन्दी संसार भली-भाँति परिचित है। जिन्होंने उनके रचे उपन्यास पढ़े हैं। वे सहज में ही समझ सकेंगे कि