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संग्राम

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हरदास--बड़े आदमियों के हाथमें सब कुछ है, जो चाहें करा दें। राज उन्हींका है, नहीं तो भला कोई बात है कि सौ पचास रुपयेके लिये आदमी गिरफ्तार कर लिया जाय, बाल बच्चोंसे अलग कर दिया जाय, उसका सब खेती बारीका काम रोक दिया जाय।

मंगरू--आदमी चोरी या और कोई कुन्याय करता है तब उसे कैदको सजा मिलती है। यहां महाजन बेकसूर हमें थोड़ेसे रुपयों के लिये जेहल भेज सकता है। यह कोई न्याय थोड़े ही है।

हरदास--सरकार न जाने ऐसे कानून क्यों बनाती है। महाजनके रुपये आते हैं, जायदादसे ले, गिरफ्तार क्यों करे।

मँगरू--कहीं डमरा टापूवाले न बहका ले गये हों।

फत्तू--ऐसा भोला नहीं है कि उनकी बातोंमें आ जाय।

मंगरू--कोई जान-बूझकर उनकी बातोंमें थोड़े ही आता है। सब ऐसी-ऐसी पट्टी पढ़ाते हैं कि अच्छे-अच्छे धोखेमें आ जाते हैं। कहते हैं इतना तलब मिलेगा, रहनेको बंगला मिलेगा, खानेको वह मिलेगा जो यहाँ रईसों को भी नसीब नहीं, पहनने-को रेशमी कपड़े मिलेंगे, और काम कुछ नहीं, बस खेतमें जाकर ठणढे-ठणढे देख भाल आये।

फत्तू--हां, यह तो सच है। ऐसी-ऐसी बातें सुनकर वह