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दूसरा अङ्क

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आदमी क्यों न धोखेमें आ जाय जिसे कभी पेट भर भोजन न मिलता तो। घास भूसेसे पेट भर लेना कोई खाना है। किसान पहर रातसे पहर राततक छाती फाड़ता है तब भी रोटी कपड़ेको नहीं होता, उसपर कहीं महाजनका डर, कहीं जमींदारकी धौंस, कहीं पुलिसकी डाँट डपट, कहीं अमलोंकी नजर भेंट, कही हाकिमोंकी रसद बेगार। सुना है जो लोग टापूमें भरती हो जाते हैं उनकी बड़ी दुर्गत होती है। झोपड़ी रहनेको मिलती है और रात-दिन काम करना पड़ता है। जरा भी देर हुई तो अपसर कोड़ोंसे मारता है। पांच साल तक आनेका हुकुम नहीं है, उसपर तरह-तरहकी सखती होती रहती है। औरतोंकी बड़ी बेइज्जती होती है, किसीकी आबरू बचने नहीं पाती। अपसर सब गोरे हैं, यह औरतों को पकड़ ले जाते हैं। अल्लाह न करे कि कोई उन दलालोंके फन्देमें फंसे। पांच छ सालमें कुछ रुपये जरूर हो जाते हैं, पर उस लतखोरीसे तो अपने देसकी रूखी ही अच्छी। मुझे तो विस्सास ही नहीं आता कि हलधर उनके फांसेमें आ जाय।

हरदास--साधु लोग भी आदमियोंको बहका ले जाते हैं।

फत्तू--हां सुना तो है मगर हलधर कभी साधुओं की संगतमें नहीं बैठा। गाँजे-चरसकी भी चाट नहीं कि इसी लालचसे जा बैठता हो।