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चतुर्थ दृश्य
स्थान--हलधरका घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में
लेटी हुई हैं, समय--आधारात।

राजेश्वरी--(मनमें) आज उन्हें गये दस दिन हो गये। मंगल मङ्गल पाठ,बुद्ध नौ,वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर। मेरा मन बार-बार यही कहता है कि यह सब सबलसिंहकी करतूत है। ऐसे दानी धर्मात्मा पुरुष कम होंगे। लेकिन मुझ नसीबों जलीके कारन उनका दान धर्म सब मिट्टीमें मिला जाता है। न जाने किस मनहूम घड़ीमें मेरा जनम हुआ! मुझमें ऐसा कौनसा गुन है? न मैं ऐसी सुन्दरी हूँ, न इतने बनाव सिंगारसे रहती हूँ। माना इस गाँवमें मुझसे सुन्दर और कोई स्त्री नहीं है। लेकिन शहरमें तो एकसे एक पड़ी हुई हैं। यह सब मेरे अभागका फल है। मैं अभागिनी हूं। हिरन कस्तूरीके लिये मारा जाता है। मैना अपनी बोलीके लिये पकड़ी जाती है। फूल अपनी सुगन्धके लिये तोड़ा जाता है।