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संग्राम

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स्त्रीपर मोहित हो जाते हैं तो पहली स्त्रीके प्राण लेनेसे भी नहीं हिचकते। भगवान यह मुझसे कैसे होगा? (प्रगट) क्यों काकी, तुम अपनी जवानी में तो बडी सुन्दर रहीं होंगी?

सलोनी--यह तो नहीं जानती बेटी, पर इतना जानती हूं कि तुम्हारे काकाकी आँखोंमें मेरे सिवा और कोई स्त्री जँचती ही न थी। जबतक चार-पाँच लड़कों की माँ न हो गई पनघटपर न जाने दिया।

राजेश्वरी--बुरा न मानना काकी, योंही पूछती हूं, उन दिनों कोई दूसरा आदमी तुमपर मोहित हो जाता और काकाको जेहल भिजवा देता तो तुम क्या करतीं?

सलोनी--करती क्या, एक कटारी अंचलके नीचे छिपा लेती। जब वह मेरे ऊपर प्रेमके फूलों की वर्षा करने लगता, मेरे सुख विलासके लिये संसारके अच्छे अच्छे पदार्थ जमा कर देता, मेरे एक कटाक्षपर, मेरे एक मुस्क्यानपर, एक भावपर फूला न समाता, तो मैं उससे प्रमकी बातें करने लगती। जब उसपर नसा छा जाता, वह मतवाला हो जाता तो कटार निकालकर उसकी छातीमें भोंक देती।

राजे०--तुम्हें उसपर तनिक भी दया न आती?

सलोनी--बेटी, दया दीनोंपर की जाती है कि अत्याचारियोंपर। धर्म प्रेमके ऊपर है, उसी भांति जैसे चन्द्रमा सूरजके ऊपर