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दूसरा अङ्क

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है। चन्द्रमाकी जोति देखने में अच्छी लगती है, लेकिन सूरजकी जोतिसे संसारका पालन होता है।

राजे०--(मनमें) भगवान, मुझसे यह कपट व्यवहार कैसे निभेगा। अगर कोई दुष्ट, दुराचारी आदमी होता तो मेरा काम सहज था। उसकी दुष्टता मेरे क्रोध को भड़का देती। भय तो इस पुरुषकी सज्जनतासे है। इससे बड़ा भय उसके निष्कपट प्रेमसे है। कहीं प्रमकी तरङ्गोंमें बह तो न जाऊँगी, कहीं विला-समें तो मतवाला न हो जाऊँगी। कहीं ऐसा तो न होगा कि महलों को देखकर मनमें इस झोपड़ेका निरादर होने लगे, तकियों पर सोकर यह टूटी खाट गड़ने लगे,अच्छे-अच्छे भोजन के सामने इस रुखे-सूखे भोजनसे मन फिर जाय, लौंडियोंके हाथों पान तरह फेरे जानेसे यह मेहनत मजूरी अखरने लगे। सोचने लगूं ऐसा सुख पाकर क्यों उसपर लात मारूं। चार दिनकी जिन्दगानी है, उसे छल कपट, मरने मारनेमें क्यों गंवाऊं। भगवानकी जो इच्छा थी वह हुआ और हो रहा है। (प्रगट) काकी, कटार भोंकते हुए तुम्हें डर न लगता?

सलोनी--डर किस बातका? क्या मैं पंछीसे भी गई बीती हूँ। चिड़ियाको सोनेके पिंजरेमें रखो,मेवे और मिठाई खिलाओ, लेकिन वह पिंजरेका द्वार खुला पाकर तुरन्त उड़ जाती है। अब बेटी सोओ, आधी रातसे ऊपर हो गई। मैं तुम्हें गीत सुनाती हूँ।