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संग्राम

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(गाती है)

मुझे लगन लगी प्रभु पावनकी।

राजे०--(मनमें) इन्हें गानेकी पड़ी है। कंगाल होकर जैसे आदमीको चोरका भय नहीं रहता, न आगमकी कोई चिन्ता, एसी भांति जब कोई आगे पीछे नहीं रहता तो आदमी निश्चिन्त हो जाता है। (प्रगट) काकी, मुझे भी अपनी भांति प्रसन्नचित्त रहना सिखा दो।

सलोनी--ऐ, नौज बेटी, चिन्ता धन और जनसे होती है। जिसे चिन्ता न हो वह भी कोई आदमी है। यह अभागा है, उसका मुंह देखना पाप है। चिन्ता बड़े भागोंसे होती है। तुम समझती होगी बुढ़िया हरदम प्रसन्न रहती है सभी तो गाया करती है। सच्ची बात यह है कि मैं गाती नहीं रोती हूँ। आदमीको बड़ा आनन्द मिलता है तो रोने लगता है उसी भांति जब दुःख अथाह हो जाता है तो गाने लगता है। इसे हंसी मत समझो, यह पागलपन है। मैं पगली हूँ। पचास आदमियोंका परिवार आंखोंके सामनेसे उठ गया। देखें भगवान इस मिट्टीकी कौन गत करते हैं।

(गातीहै)

मुझे लगन लगी प्रभु पावनकी।
एजी पावनकी, घर लावनकी॥