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भूमिका
व्यतिरेक
पलटू तीरथ को चला, बीचे मिलिगे संत।
एक मुक्ति के खोजते, मिलि गइ मुक्ति अनंत ॥६४॥[१]
कारणमाला
पहिले गुड़ सक्कर हुआ, चीनी मिसरी कीन्हि।
मिसरी से कन्दा भया, यही सोहागिनि चीन्हि ॥१३॥[२]
क्रम
नदी वृच्छ अरु साध जन, तीनों एक सुभाव।
जल न्हावे फल वृक्ष दे, साथ लखावै नांव ॥७॥[३]
परिणाम
परख बिना प्राणी दुखी, ज्यूं अंधा बिन नैन।
रज्जब धक्कै दसौ दिसि, पगि पनि नाहीं चैन ॥११॥[४]
भेदकातिशयोक्ति
लोकोक्ति
- (१) कौन कुबुद्धि भई घट अंतर, तूं अपनौं प्रभु सौं मन चोरै?
भूलि मैं गयौ विषया सुख मै सठ, लालच लागि रह्यौ अति थोरै॥