अपना काव्य-कौशल भी दिखलाना आरंभ कर दिया था जिस कारण संत-काव्य के अंतर्गत चित्रकाव्यों तक का समावेश हो गया। स्व॰ पुरोहित हरिनारायण शर्मा ने अपनी संपादित 'सुन्दर ग्रन्थावली की भूमिका' में संत सुन्दरदास द्वारा प्रयुक्त नागबंध, कंकण बंध, हार बंब, वृक्ष-बंध, छत्र बंध, चौकी बंध, चौपड़ बंध एवं कमल बंध के सचित्र उदाहरण दिये हैं और इनके लिए उनकी प्रशंसा की है। संत सुन्दरदास की रचनाओं में एकाध ऐसे पद्य भी मिलते हैं जिन्हें उनमें प्रयुक्त शब्दों के निर्मात्रिक वा मात्रा हीन होने के कारण, बहुधा 'निर्मात' अथवा 'अमज्ञ' की संज्ञा दी जाती है और इसी प्रकार, कुछ वे भी पाये जाते हैं, जिन्हें, उनमें प्रयुक्त शब्दों के केवल दीर्घ मात्रिक होने के गारण 'सर्वगुरु' कहा जाता है । इनमें से दोनों के उदाहरण इस प्रकार हैं—
जप तप करत धरत व्रत जत सत,
मन वच कम भ्रम कपट सहत तन।
वलकल बसन असन फल पत्र जल,
कसत रसन रस तजत बसत वन॥
जरत मरत नर भरत परत सर,
कहत लहत हय गय दल बल धन।
पचत पचत भव भय न टरत सठ;
घट घट प्रगट रहत न लषत जन॥२॥[१]
झूठे हाथी झूठे घोरा झूठे आगे झूठा दौरा,
झूठा बंध्या झूठा छोरा झूठा राजा रानी है।
- ↑ 'सुन्दर ग्रन्थावली', पृष्ठ ४५५ (२)