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संत-काव्य

भूमि मसाण की भसम लगाई, ::गुर बिनु ततु न पाइआ॥२॥
काइ जपहु रे काइ तपहु रे, काइ बिलोवहु पाणी।
लष चउरासीह जिनि उपाई, सो सिम्ररहु निर बाणी॥३॥
काइ कमंडलु कपड़ीआरे, अठसठ काइ फिराही।
बदति त्रिलोचनु सुनु रे प्राणी, कण बिनु गाहु कि पाही॥४॥

जैचंदा = संभवतः किसी इस नाम के व्यक्ति को संबोधित कर के कहते हैं। पिंडु बधाइया = अपना शरीर पुष्ट किया। अठसठ ...किराही = तीर्थाटन क्यों करते फिरते हो। कण...पाही = बिना अन का डंठल झाड़ते रहने से क्या लाभ।

अंतिम मनोवृति

(२)

अंतिम कालि जो लछमी सिमरैं, अैसी चिंता महि जे मरैं।
सरप जोनि बलि बलि अततरै॥१॥
अरी बाई गोविंद नामु मति बीसरै॥रहाउ॥
अंति कालि जो इसत्री सिमरै, अैसी चिंता महि जे मरै।
बेसवा जोनि बलि बलि अउतरै॥२॥
अंत कालि जो इसत्री सिमरै, अैसी चिंता महि जे मरै।
सूकर जोनि बलि बलि उतरै॥३॥
अंति कालि जो मंदर सिमरे, ग्रेसी चिता महि जे मरै।
प्रेत जोनि बलि बलि अउतरै॥४॥
अंति कालि नाराइणु सिमरै, अैसी चिंता महि जे मरै।
बदसि त्रिलोचनु ते नर मुकता, पीतंबरू बाके रिदै बसें॥५॥

बलिबलि = बारबार। तांबरु = पीताँबरधारी नारायण।

संत नामदेव

संत नामदेव जाति के छीपी थे और उनका जन्म, कार्तिक सुदि ११, सं॰ १३२६, को, सतारा जिले के नरसी बयनी गांव में हुआ था। अपने