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संत-काव्य

कभी-कभी कठिन हो जाता है। उनकी बहुत सी रचनाएं भी, कदाचित् अन्य ऐसे व्यक्तियों को रचनाओं में मिल गई हैं और उनके संबंध में भिन्न-भिन्न प्रकार के भ्रम उत्पन्न करती हैं। उनकी अधिकांश कृतियां मराठी भाषा में, उनके अभंगों के रूप में पायी जाती हैं और उनकी शेष रचनाएं हिंदी भाषा में उपलब्ध है। 'आदिग्रंथ' के अन्तर्गत उनके ६० से भी अधिक पद संग्रहीत है जिनकी भाषा हिंदी है और जो भिन्न-भिन्न रागों के अनुसार प्रकाशित गये गए हैं। इनकी भाषा पर पंजाबीपन का भी कुछ प्रभाव आ गया है, किंतु इनसे अधिक शुद्ध एवं प्रामाणिक पाठों का संस्करण अभी तक उपलब्ध नहीं है। संत नामदेव की कथनशैली की विशेषता उनके ही हृदय, निर्द्वन्द्व जीवन एवं आध्यात्मिक उल्लासद्वारा अनुप्राणित है और वह बिना सुकार्य हो, विदित हो जाती है।

पद

सर्वव्यापी गोविंद

(१)

एक अनेक विधापक पूरक, जत देषउ तत सोई।
माइआ चित्र विचित्र विमोहित, बिरला बूझे कोई॥१॥
सभु गोविंदु है सभु गोविंदु है, गोविंदु बिनु नाहिं कोई।
सुनु एकु मणि सत सहंस जैसे ओति पोति प्रभु सोई॥ रहाउ॥
जल तरंग अरू फेन बुदबुदा, जलते भिनन होई।
इहु परपंचु पारब्रह्म की लीला, विचरत आन न होई॥२॥
मिथिआ भरमु अरू सुपन मनोरथ, सति पदारथु जानिआ।
सुकित मनसा गुर उपदेसी, जागत ही मनु मानिआ॥३॥
कहत नामदेउ हरि की रचना, देषहु रिदै बीचारी।
घट घट अंतर सर निरंतरि, केवल एक मुरारी॥४॥

ओति पोति = ओ प्रोत (दे॰ 'मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणि-गण