(९)
आनीले कागदु काटीले गुड़ी, आकास मधे भरनीअले।
पंच जनासिउ बात बतऊग्रा, चोतु सुडोरी राषीअले॥१॥
मनु राम नामा बेघीअले। जैसे कनिक कला चितु मांडीअलै॥रहाउ॥
आनीलों कुंभु भराइले उदक, राज कुआरि पुरंदरीए।
हसत विनोद बोचार करती है, चीतु सुगागरि राषीअले॥२॥
संदरु एकु दुआार दस जाके, गऊ चरावन छाड़ी।
पाँच कोस पर गऊ चरावत, चीतु सु बद्धरा राषीअले॥३॥
कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन, बालकु पालन पउढोसअले।
अंतर बाहर काज विरूधी, चीतु सुवारिक राषीअले॥४॥
भरमीअले = उड़ाता है। पुरंदर = गंगा।
(१०)
जैसी भूषे प्रीति अनाज, त्रिषावंत जलसेती काज।
जैली मूड़ कुटंब पराइण, अैसी नामें प्रीति नराइण॥१॥
नामे प्रीति नराइज लागी, सहज सुभाइ भइउ वैरागी॥रहाउ॥
जैसी पर पुरखारत नारी, लोभी नरु धन का हितकारी।
कामी पुरष कामनी पिआरी, अैसी नामे प्रीति मुरारी॥२॥
माई प्रीति जिआपे लाए, गुरपरसादी दुविधा जाए।
कबहु न तूटल रहिआ समाइ, नामे चितु लाइग्रा सचिनाइ॥३॥
जैसी प्रीति बारिक अरु माता, अैसा हरि सेती मनुराता।
प्रणवै नामदेउ लागी प्रीति, गोविंद बसे हमारै चीति॥४॥
सचि नाइ = सच्चे भाव के साथ।
(११)
में बउरी मेरा राम भतारु। रचि रचि ताकड करड सिंगारु॥१॥
भले निंदउ, भले निंदउ, भले निंदउ लोगु।