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संत-काव्य

अनिल बेड़ा हउ षेवि न साकउ। तेरा पारु न पाइआ बीठुला॥२॥
होहु दयालु सतिगुरु मेलि तू। मोकड पारि उतारे केसवा॥३॥
नामा कहे हउ तरिभी न जानउ। मोकउ बाह देहि बाह देहि बीठुला॥४॥

बाजे = बहती है। अनिल साकउ = तूफान में बेड़े का खेले जाना संभव नहीं। तरि = तैरना। बाह देहि = सहायता दो।

(१५)

कृतज्ञता

मोकर तू न बिसारि तू न विसारि। तू न विसारे रामईआ॥रहाउ॥
आलावंती इहु भ्रमु जोहें, मुझ ऊपर सभु कोषिला।
मृदु मृदु करि मारि उठाइउ, कहा करउ बाप बीठुला॥१॥
मुए हुए जउ मुकति देगे, मुकति न जाने होइला
एपंडीआ मोकउ ढेढ कहत, तेरी पॅज पिछंउडी होइला॥२॥
तुजु दइयालु किपालु कहीगउ फेरिदा देहरा नामेकउ,
है, प्रतिभुज भइउ पावला। पंडीयन कर पिछ वारला॥३॥

ती स्थान विशेष जहाँ के मंदिर के सामने कीर्तन करते समय निकाल दिये जाने पर शूद्र नामदेव को उसके पिछवाड़े चला जाना पड़ा और उनकी भक्ति के कारण मंदिर का द्वार भी घूम गया। ए...होइला = पंडितों द्वारा मुझे अछूत ढेढ कहे जाते ही तुम्हारी प्रतिज्ञा वा मर्यादा को चोट लग गई। अतिभुज....अपावला = अत्याचार तुम्हारी दृष्टि में अपनी सीमा तक पहुंच गया। पिछवारला = पीछे की ओर डाल दिया।

(१६)

वही घटना

हसत बेलत तेरे बेहुरे आइआ। भगति करत नामा पकरि उठाइया॥१॥
हीनड़ी जाल मेरी जादम राइआ। छोपे के जनमि काहेकउ आइआ था॥रहाउ॥
ले कमलों चलिउ पलटाइ। बेहुरे पाछे बेठा जाइ॥२॥
जिउ जिउ नामा हरिगुण उचरै। भगत जनांकउ देहुरा फिरै॥३॥