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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/१६४

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प्रारंभिक युग


जादम राइआ = यदुनाथ, भगवान्। जनमि = योनि में। पलटाइ लौटकए?

(१७)

बही एक दाता

जै राजु देहि त कवन बड़ाई। जै भीख मंगाबलि त किया घटि जाई है॥१॥
तू हरि भजु मन मेरे पड़े निरवानु। बहुरि न होझ तेरा अवन जा रहा।
सभतै उपाई भरम भुलाई। जिसतुं देवहि तिसहि बुझाई॥२॥
सतिगुरु मिलंत सहसा जाई। कि हठ पूजउ दूजा नदरि न आई।
एके पाषर कीजै भाउ। दूजै पाषर घरीअै, पाउ।
जे ओहु देउ न ओहु भी देखा। कहि नामदेउ हम हरि को सेवा॥४॥

सभतै उपाई = तुम्हारी सारी सृष्टि। सहसा = एकदम से। पाषर = पत्थर।

(१८)

ज्ञानोदय

अणमडिआ मंदलु बाजै बिनु सावण घनुहरू गाजै।
बादल बिनु बरखा होई, जउ ततु बिचारै कोई॥१॥
मोकड मिलिओ रामु सनेही। जिह मिलिअै देह सुदेही॥रहाउ॥
मिलि पारस कंचनु होइआ, मुष अनसा रतनु परोइया।
निज भाउ भइआ भ्रमु भागा, गुर पूछे मनु पतिआगा॥२॥
जल भीतरि कुंभ समानिआ, सम रामु एकु करि जानिआ।
गुर चेले है मनु मासिन, जन नामै तनु पछानिआ॥३॥

अणमडिया = अकृत्रिम। मंदलु = या विशेष। निज .. .भाइआ = आप अपने को जान लिया।

(१९)

नित्य तत्त्व

माइ न होती बापू न होता, करमू न होती काइआ।
हम नही होते तुम नहीं होते कबनु कहां से आाइआ॥१॥