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संत-काव्य


कबीर साहब का पारिवारिक जीवन एक साधारण गृहस्थ के परिवार का जीवन था और वह इसी कारण सीधा, सादा तथा आडंबरहीन था। उनका प्रधान उद्देश्य अपने शरीर को स्वस्थ रखते हुए आध्यात्मिक जीवन का आनंद उठाना था और वे इसीके उपदेश भी देते रहे। उनके तथा उनके परिवार का भरण-पोषण अधिकतर उनकी पैतृक जीविका अर्थात् कपड़े बुनने से ही चलता रहा और अंत में उन्होंने कदाचित् इसे भी छोड़ दिया था। उनके परिवार में उनकी स्त्री एवं पुत्र का होना प्रायः सभी मानते हैं और उनके साथ उनके माता-पिता का भी कुछ दिनों तक रहना स्वीकार करते हैं। फिर भी इनमें से किसी का भी पूरा विवरण नहीं मिलता और न उनके पारस्परिक संबंध पर ही वैसा स्पष्ट प्रकाश पड़ता है। कबीर साहब की बाहरी लोगों और विशेषकर सांप्रदायिक प्रवृत्ति वाले हिंदुओं तथा मुसलमानों से कभी नहीं पटी और अंत में उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ा। प्रसिद्ध है कि अन्त में वे काशी छोड़ कर मगहर चले गए थे, जहाँ उनकी मृत्यु हो गई और जहाँ पर उनकी समाधि आज तक वर्तमान है। उपलब्ध चित्रों तथा कतिपय पद्यों के आधार पर उनकी अंतिम अवस्था का अनुमान लगभग सौ वर्षों का किया जाता है जो असंभव नहीं है।

कबीर साहब के शिक्षित होने में संदेह किया जाता है और समझा जाता है कि अधिक से अधिक उन्हें केवल अक्षर ज्ञान तक रहा होगा। परंतु इस बात को स्वीकार करने में कभी किसी को भी आपत्ति नहीं होती कि, सत्संग एवं आत्म-चिंतन के द्वारा, उन्होंने बहुत कुछ जान लिया था। फलतः अपने अनुभवों के आधार पर वे अपने विचार कभी-कभी पद्य रचना द्वारा भी व्यक्त किया करते थे और लोगों को उपदेश देते थे। उनकी ये रचनाएँ इस समय विविध संग्रहों में पायी जाती हैं और इनकी संख्या कम नहीं जान पड़ती। फिर भी इस प्रकार के संग्रहों के संबंध में बहुधा मतभेद