मान के कारण में टेढ़ौ पाग बांधने लगा हूं अथवा अपने को साधारण सम झने लगा हू। इह...गगरी = यह अंत में कच्चे घड़े की भांति विनश्वर जान पड़ा। जिनहि...लगरी = जिन पुत्र कलाआदि को मैंने अनुग्रहपूर्वक संभाला ने ही अब मुझे भुलाकर अन्य मार्ग पकड़ रहे हैं। संधिक...पगरी = संधिक वा सन्निपात के प्रभाव में पड़ कर बकने वाले के समान मेरे कहने पर हो मुझे साधु न मान लो, मैं अब तुम्हारे चरणों की शरण में आ पड़ा हूँ। खबरी = संदेशवाहक अर्थात् दूत यहाँ पर यमदूतों के हाथों में। घालहू = डालो।
(१६)
मेरौ हार हिरानौं में लजाऊ, सहस दुरासति पीव डराऊं॥टेक॥
हार गुह्यौ मेरौ राम ताग, विचि विचि मान्यक एक लाग।
रतन प्रवालै परम जोति, ता अंतरि अंतरि लागे मोति॥१॥
पंच सखी मिलि हैं सुजान, चलहु त जईये त्रिवेणी न्हान|
न्हाइ घोर कै तिलक दीम्ह, ना जानू हार किन लीन्ह॥२॥
हार हिरानी जन त्रिमल कोन्ह, मेरो यहि परोसनि हार लीव्ह।
तीन लोक की जाने ओर, सब देव सिरोमनि कह कबीर॥३॥
हार = काया। हिरानी = मेरी भूल से दूसरों के हाथ पड़ गई। लजाऊ = विवश हो लज्जा का अनुभव कर रहा हूं। सांस दुरासनि = अपने खोटे श्वास-प्रश्वास पर मैं निर्भर नहीं रह सकता अथवा मेरी सास कठोर शासन चलाने वाली है। पीव डराऊ = उवर परमात्मा का भय लगता है। पंच...न्हान = चतुर पंचेंद्रियों ने त्रिगुणात्मिका बुद्धि के भ्रमात्मक प्रवाह में डाल दिया। न्हाई...लीन्ह = उसका प्रभाव दूर होने के समय तक जान पड़ा कि अब काय ही मेरे वश में नहीं। परोसनि = कुबुद्धि ने उस पर अधिकार जमा लिया है।