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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२०४

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प्रारंभिक युग

माया मोहे अर्थ देखि करि, काकूं गरबांना।
नदर्भ भया कछू नहीं व्याएँ, कहँ कबीर दीबाना॥३॥

हम...जाना = मैं तो उस एक को केवल (एक) मात्र ही जानता हूँ। दोजय = नरक। जैसे कोई = जिस प्रकार किसी काष्ठ को काटते समय बढ़ई उसके भीतर की आग नहीं काटता।

पाठभेद—तिनको दुविधा है, जिन सतनाम न जाना, माया देखि के जगत भुलानो ('कबीर शब्दावली' भा॰ २, शब्द २७, पृष्ठ ७४)

(५३)

नाम-रहस्य

है कोई राम नाम बतायें, बस्तु अगोचर मोहि लखावै॥टेक॥
राम नाम सब कोई बखानैं। राम नाम का भरस न जाने॥१॥
ऊपर की मोहि बात न भावै। देखैं गावै तौ सुख पावैं‍॥२॥
कहँ कबीर कछु कहत न आवँ। परचें बिना सरम को पावँ॥३॥

रामनाम = नाम का वास्तविक रहस्य। ऊपर...भावै। = ऊपर की कही सुनी बातों से प्रतीति नहीं होती। देखैं गावै = स्वानुभूतिपूर्वक वर्णन करे तो।

(५४)

राम-रंग

राम नाम रंग लागो कुरंग न होई।
हरि रंग सौ रंग और न कोई॥टेक॥
और सबै रंग इहि रंग थें छूटे, हरि रंग लागा कदे न खूटै॥१॥
कहूँ कबीर मेरे रंग रामराई, और पतंग रंग उड़ि जाई॥२॥

कुरंग = बुरा रंग। और छूटै = इस रंग के चढ़ जाने पर फिर और कोई भी रंग नहीं ठहर पोता। और..... ●जाई = अन्य सभी रंग कच्चे व उड़ जाने वाले होते हैं।