पृष्ठ ६)। वीहै = डरता है। (दे॰ "बोलि न सकूं बोहतउ"—ढोला मारूरा दूहा ४०४)। बाजै = लग जाय। भी = फिर से। ३६. छींके...चहोड़ि = संभालकर सिकहर पर रखी गई। कोई...वस्था = मन में कोई आंतरिक प्रेरणा उत्पन्न हो गई। (दे॰ "तालि चरंती कुंझडी, सर संघियउ गंमार। कोइक आखर मनि बस्यउ, ऊड़ी पंख सँमार"—'ढोला मारूरा दुहा' ३७. बहोड़ि = फिर।
माया तजी तौ का नया, मानि तजी नहीं जाइ।
मानि बड़े मुनियर गिले, मानि सबनि कौं खाइ॥३८॥
साषत बाम्हण जिनि मिलै, वैसनी मिलौ चँडाल।
अंक माल दै भेटिए, मानूं मिले गोपाल॥३९॥
जैसी मुखतै निकसै, तैसो चालैं चाल।
पार ब्रह्म नेड़ा रहँ, पलमें करैं निहाल॥४०॥
काम काम सबको कहै, काम न चीन्हे कोई।
जेती मनमें कामना, काम कहीजै सोइ॥४१॥
सहज सहज सबको कहै, सहज न चीन्है कोइ।
पाँचूँ राखै परसती, सहज कहीजै सोइ॥४२॥
जेती देवौं आतमा, तेता मालिगराम।
साधू प्रतवि देव है, नहीं पाथरसूं काम॥४३॥
कबीर माला काठकी, कहि समझावै तोहि।
मनन फिरावे आपण्णां, कहा फिरावं मोहि॥४४॥
माला फेरत जुग भया, पाय न मनका फेर।
करका मनका छाड़िदे, मनका मनका फेर॥४५॥
सांई सेंती सांच चलि, औरां सूं सुधभाई।
भावै लंबे केस करि, भावै धुरड़ मुड़ाइ॥४६॥
चतुराई हरि ना मिलै, ए बातां की बात।
एक निसप्रेही निरधार का, गाहक गोपीनाथ॥४७॥