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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३

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धावा किया और फिर ११वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध काल में महमूद गजनी (सं॰ १०४५-१०८७) के हमले हुए जिनमें यहाँ की संपत्ति कई बार लूटी गई। भारत उस समय वास्तव में, एक समृद्धिशाली देश था और यहाँ की कृषि, कला, एवं वाणिज्य की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी थी। यहाँँ के राजा सेठ एवं महंत जैसे लोग विलासिता में मग्न रहा करते थे। उनके तथा साधारण जनता के बीच एक बहुत बड़ी खाई बन गई थी। राजाओं के दर्बार लगते थे जहाँ सेवकों तथा चाटुकारों की भीड़ बनी रहती थी। सजावटों तथा युद्ध सामग्रियों में धन का अपव्यय हुआ करता था। युद्ध भी अधिकतर आपस में ही हुआ करते थे और विदेशी आक्रमणों की गंभीरता की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था। फलतः विक्रम की १३वीं शताब्दी के मध्यकाल में जब शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी (सं॰ १२४९-१२६३) के धावे हुए तब स्थिति संभाली न जा सकी और दिल्ली को बहुत दिनों के लिए पराधीन बन जाना पड़ा। गोरी के एक दास कुतुबुद्दीन ऐबक (सं॰ १२६३-१२६९) ने यहाँ पर जमकर शासन करना आरंभ कर दिया। भारतीयों की स्वतंत्रता में अगले प्राय: ७५० वर्षों तक निरंतर ह्रास होता चला आया। विक्रम की १६वीं शताब्दी के अंतिम चरण में मुगल राज्य की स्थापना होने के पहले तक कई भिन्न-भिन्न मुस्लिम वंशों ने शासन किया। किन्तु शांति एवं समृद्धि में वृद्धि की अपेक्षा बराबर कमी ही होती गई। भारतीय जन- समाज, जाति-पाँति, छुआ-छूत तथा पारस्परिक कलह आदि के कारण विशृंंखल बनकर आडंबर एवं मिथ्याचार का भी क्रमशः शिकार बनता गया।

विक्रम की १२वीं एवं १३वीं शताब्दियों का युग वैष्णव धर्म के तीन प्रमुख आचार्य श्री रामानुज, निम्बार्क एवं मध्व के आविर्भाव का भी समय था जिसमें वेदांतमूलक भक्तिमार्ग का प्रचार