पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३१

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२१८ लंतु-काव्य बीई,राराय का कहिये ग्रह ऐसी’, ‘बईटि कियो बहू घनी, अब काको डर डरिये, ‘जा डर को हम तुमको सवों’। वही (१३) जब तुम गिरिवर तज हम सोदा जड तुम चंद तब हम भए हैं चकोरा 1१। माधवे तुम न तोरg तड हस नहीं तरह। मसिड तोरि कवनसिड जरहि ।रहार । जउ तुम दोवरा तड़ हम बाती। जज तुम तीरथ कड हम जाती ।।२है साची प्रीति हम तुमसिड जोरी। तुमसउ जरि अवसंगि तोड़ १३३५ जंह जंह जाड तहां तेरी सेवा समसों ठाकुरु अउर न दे ।४। सुमरे भजन कटहि जम फांसा। भगति देत गावें रविदासा ।५। दोबारादीप । जाती=यात्री। पाIठभेड- प्रभुजी तुम घम बन हम मोराजैसे चितबह चंद चकोरा,

  • जाकी जोलिवर दिनरात्री।

वहीं (१४) जब हम होते सड़ रु , अब तूही में नाहों। अनल अगम जैसे लहरि मइग्रोदधि, जल केवल जल सही है।१। माधवे, किया वही अनु जैसा। जैसा सानी होझ न तैसा।रहाड । नरपति एश सिंघासनि सोइया, सुपने भइआ भिपारी। अछप्त राज विलुरत दुखु पाइथा, सोगति भई हमारी ।२। राज भुइअंग प्रसंग जैसे हि, अब कल मरमू जनाइथा। अनिक कट जैसे भूलि पर अव, कहते कहनु न आइआ।३। सरब ए अनेक सुआम, सर्भ घट भोगवे सोई । कहि रविदास हायर्ष नेर, सहजे होई मु होई है।४है। होत थे। अनल अगम वडवानलसमुद्र को आा । मइओोदधि= स्होद बि, समुद्र। अद=रहने हुए भी । राज भुइअंग प्रसंग: सर्ष व जंवरी क, दृष्टांत।