पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रंभिक २२१ काम बस मोहिन्हो करम फंदा। सक्ति संबंध किय ज्ञान पद हरि लियो हृदय बिस्वरूप त िअयो अंधा ।।४। परम प्रजाल अविनासी अ/ मोचन, निरखि हिज रूप विसरा पाया। बदद दास वैराग पद चिता, जयाँ जगदीस गोवद रया 1५ यारी =हे मरे मित्र तथा सहायक । पत्रसमी =पांच कर्मेस्ट्रियां । वृष ==शी है १ दरसन दिजे रस. दरसन दी । दरसन द वर्ल विलंब न करे । टेक ॥ दरसन तोरा जीवन मोरारी बिन बरसन क्यों जिवे ख़फोरा ॥१। साघो सतगुरु सब जग चेछ । अ के बिछुरे मिलन लुहेल २ा। बम जीवन को झूठी आला । सत सत भाये जन रैदासा ५३ है। दन्यू भाव (२०) तुम चंदन हमें इंरड बांपुरेसंगि सुसारे बाला । गोत्र रूप से ऊँच भए है, गंध सुगंध निवासा ५१। माधड, सत संति संरचि तुम्हारी। हम अउग्न तुम उपकारी है।रहार्ड। तुम मनातूल सुपैद सपोअलहम बपुरे जस कोरा । सत संगति मिलि रही माधड जैसे मधुप नषोरा ।२। जाती ओोला पाती , ओछा जनमु हमारा। राजा राम की सेब न कीन्ही, कहि रविदास चमारा ।। " इरड =रेंड। अडगम=प्रबगुणों से भरा हुआ । मषतूल ==रश है। फेक सपोअल=इनवेस ने मकृपसयोरा-मधुमक्खो।