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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३६

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प्रारंभिक युग २२में हरि हरि हरि न उपहि रसना । अवर सभि तिभागि बचन रचना रहा। नामा धिमान पुराम वेद विधि, चउतीस अषर मांही । विस बिचारि कहिड परमारधुरामनाम सरि नाहीं ।२ा। सह समाधि उपथि रहत कुनि, बड़े भाग लिव लागी । कहि रविदास प्रगासू रिहे वरि, जनममरल भागी ।३। थि आन=मुख्थान ने चउतोस. . . सही वर्णमाला के ही अंतर्गत बिनारस =व्यासदेव। सरि=समान। रहत रहते। (२४) जलकी भीति पवन का , रकत बंद का मारा है। हाड मास नाडी को पंजर, पंधी बसे विचार है।' प्रानी कि मेरा किश्नर ते हैं जैसा तरबर मंबि बसेरा 1रहा। राष कंध उसाहु नीदाँ । साढ़े तीनि हाथ सेरी सीवां ५२॥ चके वाल पग सिर डेरी । तनु होइगो भसमकी दूरी 11३। ऊंचे मंदर सुंबर नारी। राम नाम विलु याजी हासे 1४ सेरी जाति कमीनी पांति कमोनी, ओोछा जनतु हमारा . तुम सरनागति राजा रामकहि रविदास चमारा 13!! हिजरू=पंजर, शरीर। उसारgउठाते हो। डेरीटेढ़ी है। अपनी अभिलाषा (२५) चित सिमरतु करड नैन अविलोकनो, सूबन वानी सुजलु पूरि राषऊ । मनु सु स्वुकरु करउ चरस हिरहे धरद्धरसनयंत्रित रामनाम भायड ११18 मेरी प्रीति गोविंद सिद जिनि घटे 1 से तड मोलि सहँगोलई जी सरहा। साध संगति विना भाड नहीं ऊपर्लभाव बिनु भगति नहीं होइ तेरी १२है। कई विदास इ वेनती हरि सिजपैज राष राजा राम मेरी 21३ । अविलोकनो=अवलोकन करना, खना से जुड़ी स==प्राणों के बदले में है।