पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३८

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नाभिकयुग २२५ o लगल जो सरनाइगती श्र पूरन काम!रहा। जो तेरी सरनागवश तिं माहो भरु । ऊंच नीच तुमने सरे मालदु संसारू है२५ कहि विकास अकथ कथा बहु काइ करीबें । जैसा टू वैसा ही किआ उपमा दी ३। साखी हत्रि सा हीरा छाड़िई, क अनकी आास है। ते नर जमपुर जाहि0सत भाई रैदास ॥१५ दस कहे जा हृदं, रहै रेन दिस राम । सो भागता अगधत समक्रोध न ब्यार्ष काम ३२?' जा देखें घिस उप, नरक ब्रैडमें बस में प्रेम भगति सों धरे, प्रगति जन रैदास 11३ संत कमाल संत कमाल कबीर साहब के औरस पुत्र एवं शिष्य थे तथा एक पहुंचे हुए फोर भी थे, किन्तु उनके जीवन की घटनाएं अभी तक विदित नहीं है। प्रसिद्ध है कि कबीर साहब ने इन्हें संतमत प्रचार के लिए अहमदाबाद की ओर भेजा था और दादूदयाल की शुरु परंपरा में भी इनका नाम आता है । इनकी कुछ रचनाओं द्वारा इनके कबीरपुत्र होने एवं पंढरपुर के पुण्य क्षेत्र से परिचित होने की बात भी सिद्ध होती है। ये उनमें अपने को मुस्लिम जाति का होना भी स्वीकार करते हैं । और उधर के विट्ठलनाथ तथा बार- की संप्रदाय के भक्तों के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हुए ले जाम पड़ते हैं ' कृह जाता है कि ये सदा अविवाहित ही रह गए और इनका सारा जीवन एक शुद्ध सतोगुणी विरक्त साधु का जीवन रहा जिसे इन्होंने अपने उच्चसिद्धांतों के ही अनुसार व्यतीत किया । कबीर साहब का देहांत हो जाने के अनंतर उनके नाम पर इन्होंने किसी पंथ का चलाना अस्वीकार कर दिया था जिस कारण इनके लिए 'बूडा वंशु कबीर का उपजत पूत कमाल' जैसी उक्तियाँ तक प्रसिद्ध हो चलीं,