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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२३९

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२२६ लंद-काव्य किन्तु इन्होंने इस बार की रंचकः भी पन्दा नहीं की । इनकी जीवनी के लिखने वालों ने इनके कई चमन्कारों का भी उल्लेख किया है । फिर भी इनके जन्म एवं मण की तिथियाँ अभी एक अज्ञात हैं ! इनकी ए समाधि मगहर में कबीर साहब की समाधि के ही निबट दते समान। हैं ? मंत कमल कई रचनाओं का अभी तक कोई प्रामाणिक संग्रह प्रका शिव नहीं है । इनका फुटकर नियों के देखने में प्रतीक ता है कि इनकी विचारधारा का भी मूलओोत कबीर साहब के ही निर्मल जलाशय में लगा हुआ था 1 ये बाह्य विडंबनारों में सदा दूर हो । रहे और उन्हींकी भाँति, एक शुद्ध निष्कपट तथा स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने का उपदेश भी देते रहे । ये उन्हकी भाँति बी-चुटीली वालों के कहने में भी निपुण है, किन्तु अपने आचरण में ये संद नप्रभाव के व्यवहार करते जान पड़ते हैं ! इनकी उपलब्ध रचूनाओं में खड़ी बोली का व्यवहार अधिक दीन पड़ता हैं और उनमें फारसी तथा अरव शब्द पायें जाते हैं। पद तालों (१) इतना जोम कमाय के सबू , क्या तूने फल पाया । जंगल जाके खाक लगयेफेर चौराशी अया है।१। राम भजन हैं अच्छ रे : दिलमों रख सच्चा रे 1 । जोग जुगल को गत है न्यारी, जोग जहर का प्याला । जोने पाबे उने धुपाबेवोहो रहे मतवाला ॥२। जोग कमसाय के बाबू होना, ये तो बड़ा मुश्कल है । दोनों हात जब निकल गये, फेर सुधरन भी सुकल है ३३ । से बैठो अपने मेहलमो, राम भजन अच्छा है । कछकाया औीजे नहीं खरचंध्यान धो सोझ सच्चा है ५४। कहत कमाल सुनो भाई साबू, सब से पंथ ग्यार है । बंद शास्तर की बात यही, जमके माथा फत्तर है ।।५। जीने. . .छुपाये=जिसने पाया है उसीन छिपा रखा है।