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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४०

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प्रारंभिकयुग २२७ की ==छीजेनट हो। फतर==पत्थर। (२) ये तस किंसोक्री किसकी । अखर बस्ती जंगलकी 41०। काहे कू दिवाने सस करेऐसे माता और पुत्ती । ये तो सब झूठ , राम को अपना सती ११॥ स्वयं पये पुल से , फर उठके चले जाती । बरखकी छय सुख की मीठी, एक घड़ी का सातो १२। बहुत कमाल सुनो भाई साधु, सपन भया राती। बिन मो राजा खिन नो एं, ऐस रहा चलती है।" सस =स!च । सातो=साथो । रातो =रतमन ' रहा =रठममें । अश आचरण (३) पीर पैगम्बर की बानी, यो वस्त भयो निवनी भु ॥ राजा रंक दोनों बराबरजले गंगाजल पानी है। शाम को कुई सुपर , दोनों मीठा बानी ३३१। कांचन नारी जहर सम् देखे, ना सिर झा पानी । साधु संत में शीश नमाजेहात जोरकर निर्बानी २। कहत कसाल सुनो भाई साहूँ, यही हमारी बानी । ये ही श्याम मन मो रखोऔर कयू ना जानी 1३।। बस्त.. .निर्बानो परमतत्व की वस्तु हो गई है। सूषर==मुंह पर। बान -ढंग । अr==हवा ' बान कथन । उपश (४) राम सुमो राम सुमरोरम सुमरो भाई । कन्फ काला तजकर बाबा, आपनी बादशाहो म१। देस बदेस तीरथ बरतने, कछु नहीं काम । बैठे जय सुख से ध्याबो, अखिल राजारम है।२। कहे असल इतना बच, पुरानों का सार ' भूठ सच्चा झापनो दिलमो, अपही अप पछानन हार ३३। जगार अपने स्थान पर। पछननहार= पहचाभ करनेवालो।